Punjab’s mandate: इस बार पंजाब के जनादेश ने कई संदेश दिए हैं। लोकसभा चुनावों के नतीजे जनता के गुस्से को दिखाते हैं, जो सरकार के खिलाफ है। चाहे केंद्र में बीजेपी हो या राज्य में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी, जनता ने दोनों को नकार दिया है।
पिछले ढाई दशकों में पहली बार बीजेपी और अकाली दल ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, और दोनों को नुकसान हुआ। किसानों के विरोध का सामना कर रही बीजेपी को कोई सीट नहीं मिली, लेकिन उसका वोट शेयर बढ़ा है। दूसरी ओर, जनता ने इस बार उन नेताओं को नजरअंदाज कर दिया जो राजनीतिक फायदे के लिए पाला बदलते रहे।
मोदी का भी पंजाब में कोई असर नहीं दिखा। प्रधानमंत्री ने चार चुनावी रैलियाँ कीं, लेकिन कहीं भी कमल नहीं खिला सके।
कांग्रेस ने 2019 में जीती थीं आठ सीटें
2019 में पंजाब में सत्ता में रहते हुए, कांग्रेस ने 13 में से 8 लोकसभा सीटें जीती थीं। इस बार चुनाव से पहले पार्टी के कई नेताओं ने पाला बदला। पार्टी के दो सांसद बीजेपी के टिकट पर कांग्रेस के खिलाफ खड़े हुए। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील जाखड़ जैसे नेता बीजेपी में शामिल हो गए। सिद्धू ने भी चुनाव से दूरी बनाई रखी। इसके बावजूद, जनता ने कांग्रेस पर भरोसा जताते हुए उसे 7 सीटें दी हैं। यह पहली बार है कि 1999 के बाद पंजाब में किसी पार्टी को लगातार दो बार लोकसभा चुनावों में बढ़त मिली है।
आप को झटका
पंजाब से संसद तक पहुँचने का रास्ता खोज रही आम आदमी पार्टी (AAP) को भी चुनाव में झटका लगा है। 2019 में एक सीट जीतने वाली आप को इस बार तीन सीटें मिली हैं, लेकिन ये नतीजे उसके दावों के अनुसार नहीं हैं। आप ने चुनावी मैदान में पाँच मंत्री और तीन विधायक उतारे थे। मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र संगरूर में, मीट हैयर को छोड़कर सभी मंत्री और विधायक चुनाव हार गए। बीजेपी, जिसे पिछले चुनाव में दो सीटें मिली थीं, इस बार एक भी सीट नहीं जीत सकी।
प्रकाश सिंह बादल के बिना अकाली दल भटका
पंजाब की राजनीति के बाबा बोहर कहे जाने वाले प्रकाश सिंह बादल के बिना पहला चुनाव लड़ रही शिरोमणि अकाली दल (SAD) को केवल एक सीट मिली है। हरसिमरत कौर बठिंडा से जीतीं, लेकिन एसएडी फिरोजपुर, बादल का गढ़, नहीं बचा सकी।
पार्टी बदलने वालों को जनता ने नकारा
जो सांसद, विधायक और पूर्व विधायक पार्टी बदलकर दूसरी पार्टियों से चुनाव लड़े, उनमें से सात में से छह को जनता ने नकार दिया। कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर पटियाला से जीत नहीं सकीं और न ही रवनीत बिट्टू लुधियाना से। ये दोनों कांग्रेस सांसद बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। आप सांसद सुशील रिंकू, जो बीजेपी में शामिल होकर जालंधर से चुनाव लड़े, वे भी हार गए। राहुल गांधी ने चार रैलियां की थीं, जिनमें से तीन जगह कांग्रेस ने जीत दर्ज की। सीएम भगवंत मान और केजरीवाल की सारी कोशिशों के बावजूद, आप को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली।
किसान आंदोलन का असर दिखा
एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए चल रहे लगभग चार महीने के किसान आंदोलन का असर चुनावों में भी देखा गया। बीजेपी उम्मीदवारों को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा। राज्य में सत्तारूढ़ आप के खिलाफ भी किसानों में गुस्सा था। हर महिला को 1,000 रुपये न देने का वादा पूरा न करना भी आप पर भारी पड़ा। सांप्रदायिक मुद्दे भी चुनाव परिणामों में झलकते हैं। बढ़ती नशाखोरी, कानून और व्यवस्था, बेअदबी और कैद सिखों की रिहाई भी इस चुनाव में मुद्दे बने।