सेव इंडियन फैमिली ने उठाई पुरुषों के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की मांग

Save Indian Family demands National Commission for Men after techie suicide due to gender discrimination.

कानून को सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। किसी भी नागरिक के साथ लिंग आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। हाल ही में इस भेदभाव के चलते बेंगलुरु के 34 वर्षीय तकनीकी विशेषज्ञ अतुल सुभाष ने आत्महत्या कर ली थी। उक्त घटना के बाद सेव इंडियन फैमिली संगठन ने पुरुषों के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की मांग उठाई है।

सेव इंडियन फैमिली- चंडीगढ़ के स्वयंसेवकों ने अतुल सुभाष और ऐसी ही परिस्थितियों में जान गंवाने वाले अन्य लोगों के लिए न्याय की मांग को लेकर ट्राई-सिटी (चंडीगढ़ मोहाली-पंचकूला) में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। रोहित डोगरा ने कहा कि अतुल की आत्महत्या का मामला न्याय पालिका की ईमानदारी पर गंभीर सवाल उठाता है। सुभाष ने पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश पर रिश्वत मांगने का आरोप लगाया, जिससे न्यायिक प्रणाली में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया। रोष मार्च में शामिल पुरुषों ने आवाज उठाई कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम भी शामिल है।

 

 

यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ये कानून लिंग-तटस्थ हों और लिंग की परवाह किए बिना घरेलू हिंसा के सभी पीड़ितों की रक्षा करें। पुरुषों को भी महिलाओं के समान ही मौलिक अधिकार दिए जाने चाहिए। इसके लिए कानूनों में पति-पत्नी के स्थान पर जीवनसाथी और ‘पुरुष-महिला के स्थान पर व्यक्ति शब्द का इस्तेमाल करना आवश्यक है।

डोगरा ने कहा कि न्यायपालिका तब बहुत असंवेदनशील हो जाती है जब पुरुष या उसका परिवार याचिकाकर्ता होता है। अतुल के नोट के अनुसार, पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश ने उस समय उसकी हंसी उड़ाई जब पत्नी ने टिप्पणी की कि अपना जीवन समाप्त कर लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कोई सांसद संसद म में पुरुषों पर झूठे मामलों या 498 ए के दुरुपयोग के बारे में बात करने की हिम्मत दिखाता है तो हर कोई हंसने लगता है और उसका मज़ाक़ बनाया जाता है। कुछ साल पहले जब कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने महिलाओं द्वारा झूठे मामलों के बारे में बात की थी, तो उनका भी संसद में उल्लास उड़ाया गया।

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