काव्य त्रिवेणी पुस्तक पर परिचर्चा का आयोजन

Punjab University Hindi department hosted ‘Pustaka Paricharcha,’ releasing and reviewing “Kavya Triveni” poetry collection.

पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में ‘पुस्तक परिचर्चा’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें चंडीगढ़ के प्रसिद्ध कवि डॉ. सरीता मेहता, प्रेम विज, डॉ. विनोद कुमार के सांझा काव्य संग्रह “काव्य त्रिवेणी” का लोकार्पण एवं समीक्षा की गई। कार्यक्रम की शुरुआत में विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार ने  इस किताब के तीनों कवियों एवं वक्ताओं का पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया।

वक्ता पवन शर्मा ने काव्य त्रिवेणी पुस्तक पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यह काव्य त्रिवेणी पुस्तक तीन सरस नदियों का एक सुंदर संगम है जिसमें साहित्य प्रेमी डुबकी लगाकर खुद को इसके रंग में रंगा हुआ महसूस कर सकते हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में प्रचलित हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों को इस पुस्तक में संग्रहित कविताओं में हम आसानी से देख सकते हैं जिनकी विशेषता यह है कि ये शब्द कठिनता या पांडित्य को दर्शाने का प्रयास न करके इसे सर्वगृह्य बनाते हैं। इसमें इश्क, बुजुर्गों की समस्याएं, देश प्रेम, भारतीय संस्कृति, दर्शन जैसे विषयों को आधार बनाकर कवियों ने कविताओं को रचा है।

वक्ता नारायण सिंह ने कहा कि विज्ञान भले ही हमें बल एवं शक्ति प्रदान करता है परंतु उसका सदुपयोग करना साहित्य ही सीखा सकता है और यह पुस्तक भी इस कार्य में अपना योगदान देने में समर्थ है। इस संग्रह में संगृहीत कविताओं की मुख्य विशेषता यह है कि इनमें समस्याओं को उजागर करने के साथ साथ उसका समाधान भी दिया गया है। कला पक्ष को देख जाए तो इसमें अनेक कविताएं छंदबद्ध हैं जिसमें से विधाता छंद बहुत जगह हमें देखने को मिल जाता है।

वक्ता शोधार्थी रीना विष्ट ने कहा काव्य त्रिवेणी पुस्तक ऐसी कविताओं का संग्रह है जो युवा पीढ़ी को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। यह पुस्तक समकालीन सामाजिक सरोकारों एवं विषयों को समझने का अच्छा माध्यम है।

डॉ. सरीता मेहता (काव्य त्रिवेणी पुस्तक की कवयित्री) ने कहा कि काव्य और कला दोनों एक साथ चलती हैं। मैं बहुत समय से अमेरिका में रहती हूं परन्तु भारत की मिट्टी की खुशबू हमसे जुदा नहीं हो पाती। अंतर्राष्ट्रीय रिश्ते हमारे तभी जुड़ सकते हैं जब हमारी जड़े अपनी मातृभूमि से जुड़ी हुई हों। मैं भले ही आज भारत के दूर रहती हूं परन्तु मैं समझती हूं कि मैं अब अपने देश के बहुत करीब आ चुकी हूं।

प्रेम विज (काव्य त्रिवेणी पुस्तक के कवि) ने कहा कि मैं उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से हूं जिन्होंने हिन्दी विभाग की समृद्ध परंपरा जो आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी से शुरू होकर प्रो. अशोक कुमार तक पहुंची है को देखा है। साहित्य से हमारा पुराना नाता रहा है और यह साहित्य ही है जिसकी वजह से आज हम आपके सामने बैठे हैं।
डॉ. विनोद कुमार (काव्य त्रिवेणी पुस्तक के कवि) ने कहा कि मेरे लेखन की यात्रा की शुरुआत इसी विश्वविद्यालय से हुई। मेरी रचनाओं में माध्यम वर्गीय परिवार के संघर्ष को देखा जा सकता है। जिसमें मेरे जीवन के संघर्ष को भी आप देख सकते हैं। मैं विभागाध्यक्ष महोदय का धन्यवाद करना चाहता हूं कि उन्होंने काव्य त्रिवेणी के सभी रचनाकारों को आज इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने का मौका दिया।

विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार ने अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए कहा कि साहित्य को बांचने के लिए आलोचकों ने अनेक सिद्धांत दिए हैं। इस कसौटी पर खरा उतरकर ही कोई रचना महान बन सकती है। हमें खुशी है कि काव्य त्रिवेणी पुस्तक की रचनाएं भी इन कसौटियों पर खरी उतरी हैं। आज बहुत से साहित्यकार ऐसे हैं जो चंडीगढ़ में रहते हैं हमें कोशिश करनी चाहिए उन्हें मंच प्रदान किया जाए। इसके लिए साहित्य के विद्यार्थियों एवं अध्यापकों को प्रयास करना चाहिए।

कार्यक्रम के अंत में विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार एवं सभी अतिथियों द्वारा आज के वक्ताओं को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में लाजपत गर्ग (वरिष्ठ साहित्यकार), सुदर्शन गर्ग (साहित्यकार), विभाग के विद्यार्थी एवं शोधार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी साहित्य परिषद के अध्यक्ष शोधार्थी राहुल कुमार ने किया।

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