Abhivyakti organized a poetry symposium on “love” at Abhinandan Kutir, featuring Tusharanshu Sharma.
ट्राइसिटी की सबसे पुरानी साहित्यिक संस्था अभिव्यक्ति ने “प्रेम” विषय पर आधारित, नए साल पर विशेष काव्य गोष्ठी का आयोजन डॉक्टर सत्यभामा के निवास स्थान अभिनंदन कुटीर, सकेतड़ी 4 जनवरी को किया। इसके संयोजन और संचालन साहित्यकार और रंगकर्मी विजय कपूर ने किया। भारतीय विदेश सेवा में कार्यरत कवि और ब्यूरोक्रेट तुषारणशु शर्मा ने इस कार्यक्रम में विशेष रूप से भाग लिया।
इस गोष्ठी में मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं का एक सजीव चित्रण देखने को मिला। इस आयोजन ने प्रेम की विविध छवियों—चाहे वह रूमानी प्रेम हो, प्रकृति से जुड़ा स्नेह, आध्यात्मिक अनुराग या मानवता के प्रति लगाव को शब्दों के माध्यम से लाने में अपनी भूमिका बखूबी निभाई।
कवियों ने अपने अनूठे अंदाज़ में प्रेम को नए रूप, रंग और अर्थ प्रदान किए। उनकी कविताओं में प्रेम कभी मधुर संगीत की भांति गूंजता है तो कभी विरह और दर्द की तीव्र अनुभूति के रूप में सामने आता है। अभिव्यक्ति की गोष्ठियां न केवल साहित्यिक रुचि को प्रोत्साहन देती है, बल्कि समाज में प्रेम, सहानुभूति और सकारात्मकता का संदेश भी फैलाती हैं।
कार्यक्रम दो सत्रों में सम्पन्न हुआ। पहले सत्र में डॉक्टर सत्यभामा ने “पिता का बुढ़ापा माँ की बीमारी छोटे बहन भाइयों के पेट की भूख को नन्हें-नन्हें हाथों से ढोते सपाट भावशून्य चेहरे
कुछ नहीं बोलते।”
विजय कपूर ने
“एक अनुगूंज है
तुम्हारे अनुभवों की
तीखी नाक में/
जिनके ख्यालों की सुगंध
तुम्हें उदास करती है।”
डॉक्टर प्रियंका भारद्वाज ने
” तुम्हारे साथ होने में वक्त की सुइयां / हमारी खिड़की में धूप सा चढ़ती उतरती हैं।”
राजिंदर सराओ ने
“नहीं जानते वह प्रेम था प्यार था , इश्क था या के कोई ख्वाब था/
जो भी था , खुदा की कसम, लाजवाब था ।”
डॉक्टर विमल ने
“दरवाजों के बंद और
खुलने की आवाजें
कब से गौने
के इंतजार में हैं/
लौटा हूं उन्हें रिहाई देने।”
डॉक्टर रोमिका वढेरा ने
“मेरी प्रेम कहानी / किसी को क्यों सुनानी”
आर के सुखन ने
“पड़ा है नूर जब से इक नज़र का/
मैं कोहेनूर होता जा रहा हूं।”
डॉक्टर प्रसून प्रसाद ने
“प्रेम आकर्षण ,निवेश ,प्रतिबद्धता है
इस लोक से परे की/ कोई रहस्यमयी एकता है/
इसके स्पर्श मात्र से कोई कवि बन जाता।”
डॉक्टर अशोक वढेरा ने
“गली गली घूमता रहा
वो चांद/
उस प्रेम की तलाश में।”
दर्शना सुभाष पाहवा ने
“प्रेम के केवल दो ही वर्ण,जिन का वर्णन अनिवर्चनीय है/
मधुमयी वेदना का पर्याय प्रेम,यह परमानुराग अवर्णनीय है।”
अपूर्व रावी ‘माज़ी’ ने
बर्फ सी तनहाईयों की चादर ओढ़े/
हसरतों और चाहतों की दुनियां में
एक आवाज़ सी मुझको आती है
मौज-दर-मौज।”
आर के सौंध ने “जब वो आए
ए हवा ज़रा आहिस्ता से चल
कि मैंने महबूब के रास्ते फूल सजा रखें है/
उसे पता न चले कि मैंने अपने अरमां बिछा रखे हैं।”
अर्चना आर सिंह ने ” गिलहरी का डेरा, शीत की आहट, तेल की गर्म कटोरी।”
कृष्णा गोयल ने
“जुल्म सहते हैं प्यार में जिनके
वो समझते हैं बेज़ुबाँ हैं हम/
लोग बूढ़े हुए जवानी में।
पर बुढ़ापे में भी जवाँ हैं हम।”
मोनिका कटारिया ने
“बातें ख़्वाबों से की हैं मैंने/
खोई हूँ ख़्वाबों में अक्सर
प्रेम बहुत है ख़्वाबों में
इतना अथाह।”
शहला जावेद ने
“तुम पुकार लो
इससे पहले रगों मे ख़ून जम जाए/
तुम पुकार लो
इससे पहले धड़कने खामोशी में बदल जाए।”
कुलतारण छतवाल ने
“कहते हो कि इश्क हिमाकत है/
होगा, तो संभल नहीं पाओगे।”
नवीन गुप्ता ने
“चलो इस जिंदगी को प्यार – प्यार बस प्यार से जीया जाए/
रिश्तों की कड़वाहट का ज़हर शिव की तरह से पीया जाए।”
अन्नू रानी शर्मा ने
“ना जाने क्यों/ अमूमन प्यार पर/ मैं लिख नहीं पाती।”
अलका कांसरा ने ” खुशनुमा मौसम/
जाड़े की गुनगुनी धूप।”
डॉक्टर सारिका धुपड़ ने
प्रेम व सद्भावना से ओतप्रोत हो/
नव वर्ष में नई शुरुआत कर लें।
पुष्पिंदर ने भी कविता पढ़ी। तुषारांशु शर्मा ने भी लघु कविताएं सुनाई।
गोष्ठी के दूसरे सत्र में डॉक्टर अपराजिता शर्मा ने स्वर्गीय डॉक्टर वीरेंद्र मेंहदीरत्ता जी की आत्म कथा से एक चैप्टर पढ़ा। डॉक्टर विमल कालिया ने
“तंदूर” नाम की संजीदा कहानी का सुंदर पाठ किया।
डॉक्टर पंकज मालवीय ने ग्रामीण अनपढ़ महिला के साक्षर होने की “प्रेम पत्र’ नाम की अच्छी कहानी पढ़ी।
गोष्ठी में डॉक्टर सपना मल्होत्रा, एडवोकेट एस के शर्मा और गुंचा भी उपस्थित रहे।