Imtiaz Ali Birthday: बॉलीवुड के महान निर्देशकों में शामिल Imtiaz Ali की कुछ खास बातें। Imtiaz जी का जन्म 16 जून 1971 को झारखंड की राजधानी जमशेदपुर में हुआ था। इस मौके पर उनके बारे में कुछ विशेष बातें जानते हैं।
पटना में आठवीं तक पढ़ाई
Imtiaz के पिता सिंचाई विभाग में अभियंता थे और मां गृहिणी थीं। Imtiaz जमशेदपुर में जन्म हुए लेकिन उन्होंने पढ़ाई पटना के सेंट जेवियर्स स्कूल में आठवीं तक की। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए फिर से जमशेदपुर लौट आए।
चाचा के थिएटरों से आया सिनेमा का शौक
Imtiaz अपने चाचा के घर में रहते थे। उनके चाचा के पास तीन थिएटर थे और इसी से Imtiaz का सिनेमा के प्रति रुझान बढ़ा। उनके चाचा का एक थिएटर उनके घर के बगल में था। घर की एक खिड़की से थिएटर की स्क्रीन का छोटा सा हिस्सा दिखता था और Imtiaz गुप्त रूप से फिल्में देखते थे। इससे उनका सिनेमा के प्रति रुझान और भी बढ़ा।
‘कुरुक्षेत्र’ और ‘महाभारत’ के बाद बॉलीवुड में प्रवेश
Imtiaz दिल्ली में हिंदू कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ थिएटर में शामिल हुए। यहां उन्होंने नाटक लिखना और निर्देशन करना शुरू किया। बॉलीवुड में निर्देशक के रूप में उनका करियर ‘सोचा ना था’ नामक फिल्म से शुरू हुआ। लेकिन इस फिल्म की कामयाबी नहीं हुई। इसके बाद 2006 में रिलीज हुई फिल्म ‘अहिस्ता अहिस्ता’ भी नाकामयाब रही। लेकिन 2007 में रिलीज हुई फिल्म ‘जब वी मेट’ ने उन्हें मान्यता दिलाई। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया।
‘भगवद गीता’ के प्रति रुझान
Imtiaz की जिंदगी पर ‘श्रीमद भगवद गीता’ का बड़ा प्रभाव रहा है। Imtiaz ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा, “मैंने बचपन में ही हिंदू पौराणिक पुस्तकें पढ़ीं और इसने मेरी जिंदगी पर बड़ा प्रभाव डाला। मैं बिना इसे पढ़े नहीं रह सकता था। मैंने इसका मतलब समझना शुरू किया। भगवद गीता भी मेरे लिए एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। यह पुस्तक आज भी मेरी मेज़ पर मिलेगी। छठी कक्षा में जब मैं ट्रेन से यात्रा कर रहा था और मेरे पास पैसे थे भी कम, तो स्टेशन पर केवल गीता ही एक किताब थी जिसका मुझे खरीद पाया।”
Imtiaz ने आगे कहा, “इस किताब को पढ़ते समय कुछ ऐसी बातें थीं जिन्हें मैंने 10-12 बार पढ़ना पड़ा। लेकिन मैंने समझ लिया। इसके बाद मैं हर दिन कुछ पन्ने पढ़ता था। अब मुझे इस पुस्तक को गहराई से जानता हूँ। मुझे यह सौभाग्य है कि मैंने बचपन में ही इस पुस्तक को पढ़ा। इस पुस्तक को पढ़कर मैंने लोगों को समझने में मदद पाई। इसके अलावा, मैंने अन्य धार्मिक पुस्तकें भी पढ़ीं। ये बहुत रोमांचकारी थीं और मुझे इन्हें मनोरंजन से भरपूर मिली। अगर मैं इनमें से किसी का संदर्भ वास्तविक जीवन में पाऊं और उससे जुड़ा रहा हो, तो मेरा दिन बन जाता है।”