Acharya Vivek Joshi highlights diverse worship methods and the distinction between believers and atheists.
सेक्टर 45 सी में हो रहे श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञानयज्ञ सप्ताह में उत्तराखंड पावन धाम से पधारे भागवत किंकर आचार्य श्री विवेक जोशी जी ने कहा कि सभी लोगों को अपने ईष्ट की भक्ति करने का तरीका अलग-अलग होता है। कुछ मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करते हैं तो कुछ घर पर रहकर ही भगवान का ध्यान करके उन्हें प्रसन्न करते हैं।
सभी अपने तरीके से ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। संसार में दो तरह के लोग पाए जाते हैं जिनमें से कुछ नास्तिक होते हैं तो कुछ आस्तिक। जो भगवान के प्रति श्रद्धा भाव रखता है उसे आस्तिक कहा जाता है, वहीं जो ईश्वर में आस्था नहीं रखते वह नास्तिक कहलाते हैं। भगवान के प्रति श्रद्धा भाव रखने वालों को भक्त कहा जाता है।
भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया है। जो इस प्रकार हैं – आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी।
सर्वश्रेष्ठ भक्त ज्ञानी भक्त होते हैं जो बिना किसी कामना के भगवान की भक्ति में लीन रहता है। ज्ञानी भक्त भगवान को छोड़कर और कुछ नहीं चाहता है। इसलिए भगवान ने ज्ञानी को अपनी आत्मा कहा है। इन भक्तों के विषय में भगवान ने स्वयं कहा है कि जो भक्तजन अनन्य भाव से मेरा चिंतन करते हुए मुझे पूजते हैं, ऐसे साधकों के योगक्षेम यानी जो वस्तु अपने पास न हो, उसे प्राप्त करना, और जो मिल चुकी हो, उसकी रक्षा करने को मैं स्वयं वहन करता हूं। जिस व्यक्ति के मन में हर समय केवल परमात्मा ही बसें हों और उनसे बढ़कर दुनिया में उसके लिए अन्य कोई न हो, वही भक्त है। इसलिए ज्ञानी भक्त को भगवान श्री कृष्ण ने सबसे श्रेष्ठ दर्जा दिया है।
कथा का आयोजन समाजसेवी महेश चन्द्र ध्यानी द्वारा अपनी धर्मपत्नी स्वर्गीय आशा ध्यानी की प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर किया जा रहा है।इस अवसर पर महापौर हरप्रीत बबला भी कथा सुनने पधारी तथा कुलदीप ध्यानी, मीनाक्षी, सुरेश ध्यानी, मनोज ध्यानी, विकास भदुला, नवीन ममगांई एवं पूनम कोठारी आदि भी मौजूद रहे।